राष्ट्रीय खेल दिवस (National Sports Day) हर साल 29 अगस्त को भारत में मनाया जाता है। यह दिन हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिन्हें हॉकी के जादूगर के रूप में जाना जाता है। 2024 में भी यह दिन 29 अगस्त को मनाया गया।
2024 में राष्ट्रीय खेल दिवस का महत्व:
2024 में, राष्ट्रीय खेल दिवस का मुख्य उद्देश्य देश में खेलों और शारीरिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करना, युवा पीढ़ी को खेलों के प्रति जागरूक करना और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देना था। इस अवसर पर कई खेल प्रतियोगिताओं, कार्यक्रमों, और जागरूकता अभियानों का आयोजन किया गया।
प्रमुख आयोजन:
राष्ट्रपति पुरस्कार वितरण समारोह: इस दिन राष्ट्रपति भवन में खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले खिलाड़ियों को राष्ट्रीय खेल पुरस्कार, जैसे राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन पुरस्कार, ध्यानचंद पुरस्कार आदि से सम्मानित किया जाता है।
स्कूल और कॉलेजों में कार्यक्रम: स्कूलों और कॉलेजों में विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है, जिसमें छात्रों को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
रन फॉर फिटनेस: कई जगहों पर फिटनेस और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए मैराथन और रनिंग इवेंट्स का आयोजन किया जाता है।
मीडिया और जागरूकता अभियान: इस दिन खेलों के महत्व और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए टीवी, रेडियो, और सोशल मीडिया पर विभिन्न कार्यक्रम और चर्चाओं का आयोजन होता है।
मेजर ध्यानचंद का योगदान:
मेजर ध्यानचंद ने भारतीय हॉकी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उन्होंने तीन ओलंपिक खेलों (1928, 1932, 1936) में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी बेहतरीन खेल तकनीक और मैदान पर उनकी अद्वितीयता के कारण उन्हें "हॉकी का जादूगर" कहा जाता है।
2024 में नई पहल:
2024 में, राष्ट्रीय खेल दिवस पर सरकार ने "खेलो इंडिया" कार्यक्रम के तहत नई योजनाओं और प्रोत्साहनों की घोषणा की, जिसमें खेल इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खेल सुविधाओं का विस्तार, और युवाओं को खेलों में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
राष्ट्रीय खेल दिवस 2024 ने पूरे देश में खेल भावना को पुनर्जीवित करने और सभी को शारीरिक गतिविधियों के महत्व की याद दिलाने का है।
प्रारंभिक जीवन और खेल में प्रवेश
ध्यानचंद का असली नाम ध्यान सिंह था। "चंद" नाम उन्हें उनके साथी खिलाड़ियों द्वारा मिला, क्योंकि वे अक्सर रात में चांदनी के तहत अभ्यास करते थे। उनके पिता, सुभेदार समेश्वर सिंह, ब्रिटिश भारतीय सेना में थे और ध्यानचंद का बचपन भी सेना की बैरकों में बीता। सेना में रहते हुए ही उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया।
हॉकी करियर
ध्यानचंद 16 साल की उम्र में 1922 में भारतीय सेना में भर्ती हुए। सेना में रहते हुए उन्होंने हॉकी में अपनी अद्वितीय कौशल को निखारा। 1926 में, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहली बार भारतीय टीम के साथ न्यूज़ीलैंड का दौरा किया, जहाँ उन्होंने अपनी कुशलता और खेल के प्रति निष्ठा का परिचय दिया।
ध्यानचंद ने भारतीय हॉकी टीम के साथ 1928, 1932, और 1936 के ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया, और तीनों बार भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। 1936 के बर्लिन ओलंपिक में, ध्यानचंद ने अपने शानदार खेल से जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर को भी प्रभावित किया। हिटलर ने उन्हें जर्मनी की नागरिकता और सेना में ऊँचा पद देने की पेशकश की, लेकिन ध्यानचंद ने इसे विनम्रता से अस्वीकार कर दिया।
खेल शैली और उपलब्धियाँ
ध्यानचंद की खेल शैली में गति, नियंत्रण, और सही समय पर निर्णय लेने की क्षमता अद्वितीय थी। उन्होंने अपने करियर में 400 से अधिक गोल किए। उनके अद्भुत प्रदर्शन के कारण हॉकी को एक नई पहचान मिली। भारतीय हॉकी टीम के सफल दौर में उनका योगदान अमूल्य था।
सेवानिवृत्ति और सम्मान
ध्यानचंद ने 1948 में सेना से मेजर के पद से सेवानिवृत्ति ली। उनके योगदान को मान्यता देते हुए, भारत सरकार ने 1956 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। उनके नाम पर भारतीय खेल में सर्वोच्च सम्मान "ध्यानचंद पुरस्कार" दिया जाता है, जो जीवन भर की उपलब्धियों के लिए दिया जाता है।
अंतिम समय और विरासत
ध्यानचंद का निधन 3 दिसंबर 1979 को हुआ। उनके सम्मान में भारत सरकार ने 29 अगस्त को "राष्ट्रीय खेल दिवस" के रूप में घोषित किया। आज भी, मेजर ध्यानचंद की विरासत भारतीय खेल जगत में जीवित है, और उन्हें दुनिया भर में हॉकी के सबसे महान खिलाड़ियों में से एक माना जाता है।
ध्यानचंद के योगदान से भारतीय हॉकी को जो गौरव मिला, वह आज भी एक प्रेरणा स्रोत है। उनका जीवन सादगी, समर्पण, और खेल के प्रति अटूट निष्ठा का प्रतीक है।
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