गोल्डन गर्ल वंतिका अग्रवाल की जीवन परिचय/Vanshika Agrawal biography in Hindi.

स्कूल मैं दो कक्षाओं के बीच के समय में अपने शतरंज का अभ्यास करने वाली वंशिका अग्रवाल के लिए जिंदगी का मतलब है शतरंज के 64 खाने। अपनी मां के अलावा विश्व नारायण आनंद को अपनी प्रेरणा मानने वाली वंशिका का मानना है कि जब आप सिर्फ जीत के बारे में सोच रहे होते हैं तो आपको जीत ही मिलती है। 
साल 2011 की बात है, जब 19 साल की बच्ची ने अंदर 9 गर्ल एशियन स्कूल चेस टूर्नामेंट में 102 डिग्री बुखार होने के बावजूद  हिस्सा लिया। बेहद कमजोरी महसूस होने के बावजूद भी वह खली और जीती भी। उसकी मां जो खुद बीमार थी बेटी की हौसला बढ़ाने के लिए वहीं मौजूद रही। मां से मिली हौसला और जुनून ने कभी इस होनहार खिलाड़ी को टूटने नहीं दिया। वह हाल ही में बुडापेस्ट मैं आयोजित 45 में शतरंज ओलंपियाड में इतिहास रचने वाली महिला टीम का हिस्सा बनी वंशिका अग्रवाल है। जिन्होंने हरिका द्रोणावल्ली वैशाली रमेशबाबू और तानिया सचदेव के साथ मिलकर भारत को स्वर्ण दिलाने का सपना पूरा किया। इसके अलावा उन्होंने व्यक्तिगत स्वर्णभी जीता। 

वंटिका अग्रवाल की जीवन परिचय: 
अवंतिका अग्रवाल काजल में28 सितंबर नोएडा के सेक्टर 27 में हुआ था। उनके पिता का नाम आशीष अग्रवाल और माता का नाम संगीता अग्रवाल है। उनके माता और पिता दोनों ही पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट है। भाई का नाम विशेष अग्रवाल भी एक शतरंज खिलाड़ी हैं। वंशिका ढाई साल के उम्र शतरंज खेलने शुरू किया था। बचपन में वह क्रिकेट ,टेनिस , कराटे ,स्केटिंग और बैडमिंटन जैसे खेल भी खेलती थी लेकिन शतरंज उन्हें ज्यादा पसंद था। शुरुआती चरण में ट्रॉफी जीतने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि उनका जुनून शतरंज है।

वंतिका अग्रवाल की शिक्षा: 
वंशिका अग्रवाल की पढ़ाई श्री राम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स नई दिल्ली से बीकॉम में ऑनर्स किया 

वंतिका अग्रवाल के सफलता का राज:
सफलता प्राप्त करने के लिए आदमी में कुछ ऐसा लक्षण होता है जिसके कारण वह सफल इंसान बन जाता है। यही बात है वंतिका अग्रवाल के अंदर था।

जीरो ओवर और 64 खाने:
स्कूल में जीरो आवर पीरियड होता था। जिसमें प्रत्येक छात्र को कोई ना कोई खेल चुनना होता था। वंतिका और उसके भाई ने शतरंज का खेल चुना। इस निर्णय ने वंटिका की जीवन की दिशा ही बदल दी। वंतिका 
इसके लिए सब कुछ छोड़ने को तैयार थी।

सुबह योग,शाम को बैडमिंटन:
अवंतिका अपने फिटनेस के लिए काफी जागरूक रहती है। फिटनेस बनाए रखने के लिए वह हर रोज सुबह 1 घंटे योगासन करती है तो शाम को बैडमिंटन खेलती है। इसके अलावा वह कई भाषाओं में शतरंज पर लिखी किताबें भी पड़ती है। 
मां ने चार्टर्ड अकाउंटेंट की नौकरी छोड़ी: 
माही उनकी असली प्रेरणा स्रोत है। इसका कारण यह है कि स्कूली दिनों के दौरान शतरंज के खेल में वह अपनी उम्र से बड़े बच्चों को बातों बातों में ही हारा देती थी। शिक्षक ने उनकी प्रतिभा को गौर से प्रथा और उनकी माता को बताया। तब से उनकी माता उनके साथ खड़ी रहती है और उनके आत्मविश्वास को बढ़ती रहती है। उन्होंने अपनी चार्टर्ड अकाउंटेंट की नौकरी भी छोड़ दी।

वंतिका की अनोखी बातें:
बुडापेस्ट में 45 में शतरंज ओलंपियाड में भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाने वाली स्वर्ण विजेता महिला टीम की सदस्य। 

भारत के स्वर्ण जीतने के 100 साल के इंतजार को खत्म करने में भूमिका।
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